सबकुछ प्रभु का सब कुछ प्रभु से
मनुष्य में सामर्थ्य भी प्रभु की दया और व्यक्ति की पात्रता के अनुरूप ही होता है।
व्यक्ति जैसा स्वयम का आंकलन करता है उसी प्रकार का उसका व्यक्तित्व बन जाता है।
जो मार्ग वह निर्धारित करता है उसके अनुरूप उसकी विचारधारा
तथा जो लक्ष्य वह निर्धारित करता है, उसके अनुरूप व्यक्ति आत्मबल को प्राप्त करता है।
प्रभु वचन ⬇
*रसोSहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसुर्ययो:*|
*प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे ((पौरुषं नृषु))* |
अंत मे जो शब्द आया '' *पौरुषं नृषु*"
इसका अर्थ है कि व्यक्ति में सामर्थ्य रूप में भी मैं (ईश्वर) ही विद्यमान हैं।
इसी कारण जब व्यक्ति सद्मार्ग का पथिक बन जाता है तो उसका आत्मबल, सामर्थ्य, साहस, धैर्य, संकल्पशक्ति बहुत अधिक बढ़ जाती है, वह जीवन मे कुछ ऐसा कर जाता है , जो सामान्य व्यक्ति के लिए कल्पना करना भी कठिन हो।
इसका कारण यही है के व्यक्ति में सामर्थ्य रूप में प्रभु जी ही विराजते हैं।
पिता अपने पुत्र को सही दिशा में बढ़ता देख उसे प्रोत्साहित तो करता ही है।
अतः - इस संकेत को समझ लें यदि आपका मार्ग सही है। फिर लक्ष्य चाहे कितना भी विशाल हो , राह जितनी भी मुश्किल हो , चिंता न करें बस विश्वास के साथ बढ़ चले आप देखेंगे के कोई दिव्य शक्ति (प्रेरणा) आपका मार्गदर्शन कर रही है।
यह देह धारण की है तो स्वार्थी प्रवृत्ति रख मात्र स्वयम के विषय मे सोचते हुए ही जीवन व्यतीत न कर दें , दृष्टिकोण में व्यापकता लाएं, फिर आप पाएंगे के आप अणु होते हुए भी स्वयम का सम्बंध अनंत से जोड़ चुके हैं।
करता भाव न रक्खें क्योकि आप कुछ कर नहीं सकते मात्र आपको भ्रम है कि मैंने किया , मैं सब कर लूंगा,
आप मात्र स्वयं को पात्र बनाएं , योग्य बनाएं , यहाँ तक तो ठीक है। - पर यह न भूलें करने कराने वाला तो वही है।
जब उसे कुछ देना होता है तो अज्ञात स्त्रोतों से दे देता है। जिसकी आपको अपेक्षा भी नही होती, और जब लेना होता है तो इसी प्रकार ले भी लेता है।
अतः विचलित न हों आप उसके विधान को नहीं समझ सकते तो हित इसी में है के उसकी रज़ा में राज़ी रहें।
सीता राम सीता राम सीता राम कहिए , जाहे बिधि राखे राम ताहे बिधि रहिए
यही - गीता प्रेरणा है
यही- हमारा प्रयास
यही - जीवन की सार्थकता है
यही - (गीता धाम का उद्देश्य)
यही - निर्वाण मार्ग
हरे कृष्ण
आचार्य वरुणानंद
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