naad yog
#नाद #योग योगि ने बाहरी जगत को नश्वर जान कर अंतस की यात्रा शुरू की और कठिन साधना के माध्यम से अत्यंत शुक्ष्म विषयों को जाना समझा और अनुभव किया ...तत्पश्चात इन विश्लेषणो से प्राप्त अनुभूत ज्ञान से - मन , चित्त , अहंकार तन्मात्राएँ , चक्र और कुंडलिनी आदि के स्वरूप को जाना और शास्त्रों में संग्रहित किया ... इसी आंतरिक यात्रा में योगी ने एक विशेष ध्वनि को सुना जो कभी तीव्र थी तो कभी शुक्ष्म और धीमी... जो कोई सामान्य ध्वनि नहीं थी.... वह उस परम सत्ता की संकेतक अंशरूप थी जिसे अनुभव कर के योगी ने परम् शांति को प्राप्त किया...और इसी ध्वनि के विज्ञान और अनुभूति को #नाद #योग का नाम दिया ... योगी ने ध्वनि को दो रूपो में व्यक्त किया एक - (आहत) = जो किसी वस्तु के टकराव से उतपन्न होती है दूसरी - (अनाहत) = जो कि स्वउच्चारित है जैसे ओंकार की ध्वनि.... किन्तु इस ध्वनि को अनुभव करने के लिए भी एक विशेष योग्यता की आवश्यकता है जो शास्त्रों में वर्णित है जिसे चार भागों में बंटा गया है ... ये चार स्तर नाद योग की परिपक्वता के अलग अलग स्तर हैं .... १. आरम्भावस्था - ब्रह्मग्रन्थि के...