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naad yog

#नाद #योग  योगि ने बाहरी जगत को नश्वर जान कर अंतस की यात्रा शुरू की और कठिन साधना के माध्यम से अत्यंत शुक्ष्म विषयों को जाना समझा और अनुभव किया ...तत्पश्चात इन विश्लेषणो से प्राप्त अनुभूत ज्ञान से - मन , चित्त , अहंकार तन्मात्राएँ , चक्र और कुंडलिनी आदि के स्वरूप को जाना और शास्त्रों में संग्रहित किया ... इसी आंतरिक यात्रा में योगी ने एक विशेष ध्वनि को सुना जो कभी तीव्र थी तो कभी शुक्ष्म और धीमी... जो कोई सामान्य ध्वनि नहीं थी.... वह उस परम सत्ता की संकेतक अंशरूप थी जिसे अनुभव कर के योगी ने परम् शांति को प्राप्त किया...और इसी ध्वनि के विज्ञान और अनुभूति को #नाद #योग का नाम दिया ... योगी ने ध्वनि को दो रूपो में व्यक्त किया एक - (आहत) = जो किसी वस्तु के टकराव से उतपन्न होती है  दूसरी - (अनाहत) = जो कि स्वउच्चारित है जैसे ओंकार की ध्वनि....  किन्तु इस ध्वनि को अनुभव करने  के लिए भी एक विशेष योग्यता की आवश्यकता है जो शास्त्रों में वर्णित है जिसे चार भागों में बंटा गया है ... ये चार स्तर नाद योग की परिपक्वता के अलग अलग स्तर हैं ....  १. आरम्भावस्था - ब्रह्मग्रन्थि के...

शुद्धता और आधुनिकता (YOG_SADAN)

समय के अनुसार परिस्थितियां बदलती हैं।  जिसके कारण आवश्यकताएं भी भिन्न भिन्न हो जाती हैं।  उन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यक्ति आधुनिकता की और बढ़ता है।  जो कि आवश्यक भी हैं।  लेकिन इन आवश्यकताओं के अनुसार विकसित किये गए सिद्धांतों और वस्तुओं का अर्थ यह नहीं होता कि हम पूर्व वर्णित वस्तुओं और नीतियों के महत्व को मानना बंद कर दें। बल्कि आधुनिकता का अर्थ होना चाहिए कि हमारे पास जो है।  हम उसे ओर अधिक विकसित करें नईं चीज़ों को सहायक के रूप में देखें।  किन्तु जो हमारे पास है उसके स्वरूप को भी न बिगड़ने दें। जिस प्रकार - एक जोहरी सोने को नईं नईं आकृति देता है। जिस से उस सोने से नए नए आभूषण बनते हैं।  इसमे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन यदि वह उस सोने में कोई अन्य धातु मिला दे , तो उस स्थिति में वहां विकृति आजाती है फिर उसके द्वारा किया गया कार्य पूर्णतया अनुचित हो जाता है  कहने का आशय यही है  के आवश्यकता अनुसार स्वयम को विकसित करना उचित है किंतु शुद्धता पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। #YOG_SADAN

सफल और असफल व्यक्ति में अंतर

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जीवन मे कुछ विशेष करने और बड़ी सफलता प्राप्त करने वाले लोगो का प्रतिशत बहुत कम है।  क्योंकि बहुत कम लोग ही ऐसे हैं  जो जीवन मे एकाग्र हैं सही चीज़ों का चुनाव कर सकते हैं।  और  गलत चीजें भले ही बड़ा आकर्षण लिए हो उसे छोड़ कर आगे बढ़ सकते हैं।  यही कारण है कि फालतू की चीज़ें बड़ी जल्दी प्रसिद्ध हो जाती हैं                और जो महत्वपूर्ण है सही है , आवश्यक है उसका प्रचार बड़ा धीरे धीरे होता है।  लेकिन अगर जीवन में  कुछ बेहतर करना है तो इस प्रवर्ति को बदलना होगा।  जनसमुदाय में योग,  स्वास्थ्य और जीवन के मूल्यवान सिद्धांतो के प्रति जाग्रति के लिए हमने youtube channel    *YOGI VARUNANAND*    का निर्माण किया है  यदि आप भी जी वन के प्रति और स्वयम के स्वास्थ्य के प्रति सजग हैं तो इस channel को subscribe करें।  https://www.youtube.com/channel/UCxCpm9xOqNDtlGkwUWBQlPA #YOGI VARUNANAND

हठयोग

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हठमार्ग में ऊर्जा का उर्धगमं करना ही उसकी सार्थकता है। सामान्यत हमारी जो ऊर्जा मूलाधार में लगी होती है  योग की विशेष क्रियाओं (विपरीतकर्णी आदि) द्वारा उसे ऊपर उठाने का अभ्यास करना चाहिए। मूलाधार में ऊर्जा का होना अर्थात भोग प्रवृत्ति का होना।  निरन्तरता के साथ मूलाधार पर ध्यान लगा कर इसे उर्जित कर देने पर स्थिति बदलने लगती है ओर साधक में - वीरया निर्भयता , जागरूकता, जैसे गुण आने लगते हैं जो कि आगे की साधना के लिए आवश्यक हैं।  इसी प्रकार जब साधक ह्रदय प्रदेश में स्थित अनाहद चक्र तक पहुंचता है तो यहां से आध्यात्म का प्रकाश और चित्त के स्वरूप का ज्ञान होने लगता है।  और यह बोध हो जाता है के पुरुष (आत्मा) और बुद्धि सर्वथा भिन्न हैं। इसे ही *आध्यात्मप्रकाश* कहा जाता है। यह आत्मा का प्रकाश बुद्धि को प्रकाशित कर के साधक को आगे की अवस्थाओं तक पहुचने के योग्य बनाता है।  इसप्रकार साधना करता हुआ साधक परम गति तक पहुंचता है।

सबकुछ प्रभु का सब कुछ प्रभु से

मनुष्य में सामर्थ्य भी  प्रभु की दया और व्यक्ति की पात्रता के अनुरूप ही होता है। व्यक्ति जैसा स्वयम का आंकलन करता है उसी प्रकार का उसका व्यक्तित्व बन जाता है। जो मार्ग वह न...

योग का वास्तविक स्वरूप

योग का वास्तविक स्वरूप । अगर हम गौर से देखें तो सर्वत्र योग दिखाए देगा  हमारा जीवन  यह प्रकृति  समस्त सृष्टि , प्रत्येक जीवधारी  हमारे आपसी संबंध यह ब्रहम्माण्ड  प्रत्येक व्यवस्था जो सुचारू रूप से चल रही है  उसका आधार योग है | प्रत्येक व्यवस्था अनेक स्तिथियों  वस्तुओ आवश्यकताओं के आधार पर एक दूसरे से जुड़ी हैं। हमारी पृथ्वी सूर्य , चंद्र आदि पर आधारित है। अन्य ग्रहों का भी अपना विशेष महत्व है। हमारी पृथ्वी का सौंदर्य प्रकृति पर आधारित है। वहीं हमारा जीवन और अन्य जीवधारियों का जीवन प्रकृति पर और प्रकृति का अस्तित्व इन सभी जीवधारियों पर आधारित है। इसी प्रकार  ईश्वर ने यह सुंदर व्यवस्था बनाए हुई है। अतः हमें योग को समझने के लिए सब से पैहले  इस सृष्टि योजना को समझना होगा  अपनेआप को समझना होगा  ओर जब हम इस सर्वत्र फैले योग को समझ जाएंगे । तब हमारे जीवन में विशाल परिवर्त हो सकेंगे  ततपश्चात हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ मन के साथ स्थिर हो जाएंगी। और मन  बुद्धि के साथ आ मिलेगा  यही अवस्था  #परमगति  कहलाती है। और ...